Pure Organic Herbal Tea

☕Pure organic herbal tea . ☕

Divine living is launching its pure organic pure herbal tea.
It is an extraordinary , perfect combo of 5 natural herbs and organic tea from the tea estates of uttarakhand.

Qualities are



1 super charger
2 immunity booster
3 magical taste 
4 detoxing drink
5 no need to add sugar , naturally sweet leaves inside the pack
6 diabetic people can use .



7 full of anti oxidents.
8 energy enhancer . 
9 stand alone natural product in market



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We are working on price and will inform you very soon. Online orders can be placed on 8800353308 / 9643407510 (call and whats app) . 

Magical Marjoram herb !!!

Marjoram leaves

Marjoram, also known as sweet marjoram, is an aromatic herb in the mint family that has been grown in the Mediterranean, North Africa, and Western Asia for thousands of years .



While similar to oregano, it has a milder flavor and is often used to garnish salads, soups, and meat dishes.
What’s more, marjoram has been shown to have several anti-inflammatory and antimicrobial properties. It has been used medicinally to help treat a variety of ailments, including digestive issues, infections, and painful menstruation 
.
It’s particularly potent when dried but can also be used fresh.

Celery : A gift of nature

Celery

 is a powerful vegetable that helps to lower cholesterol levels and arthritis pain. It can also quicken weight loss, protect against oxidative damage, and lower high blood pressure. Including celery stalks in your diet can promote your overall health as it is rich in vitamin C.

Celery Nutrition

According to the USDA National Nutrient Database, 100 g of raw celery contains minerals such as calcium, magnesium, iron, zinc, and potassium. The vitamins in celery include vitamins A, K, C, E, and the B vitamins (thiamin, riboflavin, folic acid, vitamin and vitamin B6). It mostly made up of water, fiber and some carbs.


Cele

How to Use Celery?

Celery can be used in many culinary preparations. Some of them are mentioned below.

Salad: Add chopped stalks to vegetables or meat of your choice. Add salt and crushed pepper to the salad.

For the dressing, drizzle lime juice and olive oil.

Fruit salad: Mix sliced apples and nuts such as peanuts, raisins, etc. with chopped celery in a bowl. Mix orange juice with mayonnaise and drizzle it over the mixture.

Ants on a log: Cut celery stalks into half vertically, spread peanut butter on the sticks and then sprinkle raisins on them.

Soups: Add celery stalks and leaves to soups, gravies, etc. as per your choice.

Go for this grass !!

Lemongrass, also known as citronella grass, is a perennial grass that grows in tropical climates. ...
A stalk of lemongrass consists of a pink base, a few tough green husks, and a white core, which is what is used in cooking. The flavor of lemongrass is characterized by mild citrus notes.   

                                                              
Lemongrass

Lemongrass also contains substances that are thought to relieve pain and swelling, reduce fever, improve levels of sugar and cholesterol in the blood, stimulate the uterus and menstrual flow, and have antioxidant properties.

To buy lemongrass use following link-

https://www.instamojo.com/@divineliving/

For more herbs,visit following link -

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By increasing blood circulation, it also helps in purifying the liver. Lemongrass is also known to limit cholesterol absorption from the intestines, thus promoting overall heart health.

योग और संगीत का आपस में क्या संबंध है ?


               मानव तन
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मानव तन त्रि-स्तरीय और पञ्च कोषीय है। स्थूल,सूक्ष्म और कारण,ये तीन स्तर हैं शरीर के,जिनमे पांच कोष है : अन्नमय कोष,मनोमय कोष,प्राणमय कोष,विज्ञानमय कोष तथा आनन्दमय कोष। स्थूल शरीर स्थूल पञ्चभूतों यानी पृथ्वी,जल,अग्नि,आकाश तथा वायु से निर्मित है। सूक्ष्म देह सूक्ष्म पञ्चभूतों,पांच ज्ञानेन्द्रियों (कान,त्वचा,नेत्र,नासिका,रसना),पांच कर्मेन्द्रियों (वाणी,हाथ,पैर,गुदा और उपस्थ) अंतःकरण चतुष्टय (मन,बुद्ध,चित्त,अहंकार),पञ्च प्राण (प्राण,अपान,व्यान,उदान,समान),अविद्या तथा काम और कर्म से बना है। पञ्चभूतों के होने से तत्परिणामी पांच प्रभाव या तन्मात्राएं (गंध,रस,रूप,शब्द,स्पर्श) भी होती हैं। कारण शरीर सत,रज,तम गुणों से युक्त है। इसी के अंदर परब्रह्म का अंश जीवात्मा अकर्ता होकर विद्यमान है,जो जीवन संचालित करता है। शरीर में आठ चक्र हैं --- 

मूलाधार,स्वाधिष्ठान,मणिपूर,अनाहत,विशुद्ध,आज्ञा,नाद,विन्दु


इसमें तीन नाड़ियां -- इड़ा,पिंगला और सुषुम्ना हैं सुषुम्ना के अंदर बज्रा और बज्रा के अंदर चित्रा नाड़ी है। चित्रा का मुख ब्रह्म नाड़ी है। मूलाधार चक्र यानी बैठने की जगह अंदर मेरुदण्ड के अंत पर 'कुण्डलिनी' विराजमान है यह साढ़े तीन फेरे लगाये सुषुप्त पड़ी रहती है। इस प्रकार यह शरीर जड़,चेतन,प्रकृति,पुरुष अथवा परा और अपरा प्रकृति का संगम कहा गया है। मृत्यु काल में जीवात्मा इसी सूक्ष्म शरीर (कारण शरीर सहित) को बाहर ले जाता है,और उदान वायु के सहारे परलोक गमन करता है। स्थूल देह यहीं रहकर अलग अलग विधियों से नष्ट हो जाता है।



          मनुष्य ने नाना शोधों और अभ्यासों से जीवन को सफल बनाने के उपाय निकाले हैं। लोक और परलोक सिद्ध करना,श्रेष्ठ बनाना मनुष्य की चिर अभीप्सा रही है। मैं कौन ? कहां से आया ? अंत कहां है ? वह अनन्त कौन और कैसा है ? यह सब जानने की लालसा सदा सर्वदा रही है। इन विषयों की गम्भीरतम गवेषणाएं इस पवित्र भारत भूमि में हुई हैं,जो संहितावों के रूप में भी उपलब्ध हैं और गुरु,शिष्य परम्परानुसार भी उत्तरोत्तर चलीं हैं।

योग
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       योग कई अर्थों में प्रयुक्त होता है।इसका अर्थ है जोड़ या मिलन।'युजिर् धातु में ''प्रत्यय मिलाने से यह बनता है।"युज्यते अनेन इति योगः"। जो मिला दे या जो जोड़ दे,वह क्रिया 'योग' है। शारीरिक और श्वास,प्रश्वास के संयमन की क्रियावों या व्यायामों को भी योग कहते हैं।कहीं किसी विस्तृत विषय के प्रतिपादन में अलग अलग अध्यायों/खण्डों को भी योग कहा गया है।गीता में सभी अध्याय एक एक योग कहे गये हैं। घटनावों के अनुकूल,प्रतिकूल होने को भी सुयोग और कुयोग कहा जाता है;किन्तु जिस विशेष अर्थ में यह शब्द अब रूढ़ हो गया है,वह है जीवात्मा को परमात्मा से जोड़ने की प्रक्रिया।



       ये प्रक्रियाएं कई प्रकार की हैं किन्तु उनमें 1- राजयोग 2- हठयोग 3- मंत्र या जपयोग 4- भक्तियोग और 5- लययोग प्रमुख हैं। सब का लक्ष्य जीव का परमात्मा की सत्ता से निर्गुण या सगुण रूप में एकाकार करना है। वह सदेह भी जीवन्मुक्त प्राणी बन,यंत्रवत् कर्म करते और उनसे बंधते हुए लोकहित रत हो सकता है।



       योग का प्रारम्भ आदि काल से ही है। भगवान कृष्ण ने गीता में इसका प्रवर्तक स्वयं को कहा है वे कहते हैं 'हे अर्जुन! यह ज्ञान आदि में मैंने रवि को,रवि ने मनु को,मनु ने राजा इक्ष्वाकु को बताया था,समय के प्रवाह में यह लुप्त हो गया,जिसे मैं फिर से तुम्हें बता रहा हूं।'(अध्याय 4,श्लोक 1से 3) हठयोग या कुण्डलिनी जागरण पद्धति के प्रवर्तक आदिनाथ यानी भगवान शंकर हैं,जिन्होंने इसे माता पार्वती को बताया। श्रीकृष्ण 'योगेश्वर' भगवान शंकर 'योगीश्वर'कहे जाते है।अतःयह विद्या दिव्य है।

योग कितना प्राचीन है इसको जानने के लिए सुनिये श्रीमद भगवदगीता का चौथा अध्याय

https://youtu.be/pK_XMGzB__8


योग की चर्चा में महर्षि पतञ्जलि का नाम आना स्वाभाविक है।उन्होंने योग को चित्त की वृत्तियों का निरोध'कहा है और इसके आठ अंग बताए हैं1-यम 2-नियम 3-आसन 4-प्राणायाम 5-प्रत्याहार 6-धारणा 7-ध्यान और 8-समाधि। इस विषय का विस्तार अनन्त है। सारांशतःजीव ब्रह्मस्वरूप ही है,बस माया का परदा पड़ हुवा है।मन चञ्चल है और इन्द्रियों के विषयों में रत होकर ऊर्जा नष्ट करता रहता है।शास्त्र वर्णित उपायों से,उसे विषयों से हटाकर ध्यान से एकाग्र करें।यह ध्यान अविरल और निर्बाध होने पर समाधि की स्थिति जाती है।'आज्ञा'चक्र यानी दोनों भृकुटियों के बीच के स्थान पर ध्यान लगाना श्रेयस्कर है।यहां ध्यान लगाने से साधक को पहले जलते हुए दीपक का प्रकाश दिखाई पड़ता है,फिर बादल में छिपे सूर्य की लालिमा का आभास होता है,तदनन्तर विशुद्ध चक्र से मूलाधार पृथ्वी तत्व तक प्रकाश का भान होने लगता है।(ज्वलद्दीपाकारं तदनु नवीनार्क बहुलः।प्रकाशं ज्योतिर्वा गगन धरणी मध्य मिलितम्।।) इसी स्थिति को गीता में यों कहा गया है--"सर्व द्वारेषु कौन्तेय प्रकाश उपजायते"


        ध्यान करने के अन्य विन्दु या केन्द्र भी बताये गये हैं,जैसे नासिका का अग्र भाग,मानसिक रूप से अंतःयात्रा, वास्तुकला,चित्रकला,वाद्य,गायन स्वर,आराध्य देव का कोई अंग विशेष आदि;किन्तु आज्ञा चक्र में मन सूक्ष्म रूप से अपनी रश्मियों के साथ रहता है।अतः अधिक फलदायी है।कहा गया है "एतद् पद्यान्तराले निवसति मनःसूक्ष्म रूपं प्रसिद्धम्" मन से 64 रश्मियां प्रवाहित होती हैं।यहां ध्यान की अविरलता से साधक को उन्मनी गति और परम शिव का दर्शन सुलभ हो जाता है।योग सिद्धि तभी है जब उन्मनी गति लब्ध हो जाय।"उन्मन्या सहितो योगी योगी उन्मनी बिना" फक्कड़ साधु कबीरदास ने इसी को कहा है,"उन्मनि चढ़ा मगन रस पीवै"


         कैवल्य की स्थिति का वर्णन करते हुए आद्य-शंकराचार्य कहते हैं:--
          क्व गतं केन वा नीतं कुत्र लीनमिदं जगत्।
          अधुनैव मया दृष्टं नास्ति किं महदद्भुतम् ।।
                          (विवेक चूड़ामणि)

   (अहा!यह संसार कहां चला गया ? इसे कौन ले गया ? यह कहां लीन हो गया ? अहो!बड़ा आश्चर्य है,जिस संसार को अभी मैं देख रहा था,वह कहीं दिखाई नहीं देता।)



          हठयोग में कुण्डलिनी को जागृत कर विन्दु स्थान तक पहुंचाया जाता है। जप योग में मंत्र जप से आराध्य से आमेलन होता है। जप तीन प्रकार का होता है--वैखरी,उपांशु,मानसिक।लय योग साधना द्वारा परा सत्ता में लय होने अर्थात् सायुज्य मुक्ति का पथ है।भक्ति योग भजन कीर्तन,श्रद्धा मिश्रित प्रेम से इष्ट का अनन्य चिन्तन का योग है।हठयोग का आधार तंत्र है अन्य का वेद।

संगीत
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        सुव्यवस्थित ध्वनि जो रस की सृष्टि करे 'संगीत' कहलाती है। इसे प्रारम्भ में गायन,वादन और नृत्य समन्वित माना गया यथा -- "गीतं वाद्यं तथा नृत्यं त्रयं संगीत मुच्यते"; किन्तु बाद में प्रथम दो से ही इसकी पूर्ति मानी गई।संगीत भी आदि काल से ही है।इसका सम्बन्ध स्वर,लय ताल से है।नाद इसका मूल है।सृष्टि में जब कुछ नहीं था,तो सर्व प्रथम एक 'स्फोट'हुवा,जिसका स्वर जैसा था,जो सारी वर्णमाला का मूल,शब्द ब्रह्म है।यह सर्वार्थ सिद्धि कारक है।सबसे पहले आकाश की सृष्टि हुई,जिसकी तन्मात्रा 'शब्द' है।कहा गया है 'नादाधीने जगत्'।स्वर मुख से तथा नाना वाद्य यंत्रो से भी होते हैं।वे टकराने से हुए स्वर हैं।आहत नाद हैं।एक अनाहत नाद भी है,जो योग से अंतस्थल में सुनाई देता है। ध्यानावस्थित योगी को प्रारम्भ में मेघ गर्जना का फिर भेरी का स्वर सुनाई देता है।



         सारी प्रकृति या सृष्टि लय,ताल पर सञ्चालित है,जैसे संगीत।संगीत की उत्पत्ति भी आदि और अलौकिक है।भगवान की श्वास से निःसृत वेदों में सर्वश्रेष्ठ 'सामवेद'में संगीत का मूल है। सामवेद की 'गान संहिता' में ऋचावों का लयबद्ध रूप मिलता है।ऋचावों को गीति का रूप देने के लिये आठ कारक माने गये हैं:--1-विकार 2-विश्लेष 3-विकर्षण 4-विराम 5-अभ्यास 6-लोप 7-आगम 8-स्तोम संगीत के दृश्य और अदृश्य प्रभावों के अनुसंधान में रत ऋषियों को ऐसी चमत्कारी शक्तियां,सिद्धियां और अध्यात्म का इतना विशाल क्षेत्र उपलब्ध हुवा कि उसके लिये पृथक से एक वेद संकलित किया जिसे सर्वश्रेष्ठ मानते हुए भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में अपने को 'वेदानां सामवेदोऽस्मि' कहा

समस्त स्वर, लय, ताल,छन्द,गति,मंत्र,राग,नृत्य,मुद्रा,भाव आदि सामवेद से निकले हैं। नाद 22 श्रुतियों में विभक्त हैं।ये विशिष्ट ध्वनि तरंगें हैं,जो सप्त स्वरों में निबद्ध हैं:---

1-षडज-(सा)तीव्रा,कुमुद्धति,मन्दा,छन्दोवती।
2-ऋषभ-(रे)दयावती,रञ्जनी,रतिका।
3-गान्धार-()रौद्री,क्रोधा।
4-मध्यम()बज्रिका,प्रसारिणी,प्रीति,मार्जनी।
5-पञ्चम-()क्षिति,रक्ता,सान्दीपिनी,अलायिनी।
6-धैवत()मदन्ती,रोहिणी,रम्या।
7-निषाद(नि)उग्रा,क्षोभिण।

          संगीत से स्नायु तंत्र को आराम मिलता है,स्मृति ह्रास कम होता है,अच्छी निद्रा आती है,तनाव दूर होता है।वनस्पतियों की वृद्धि भी होती है।मन एकाग्र करने में सहायक होता है।

योग से सामीप्य
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           सामान्यतया संगीत श्रवणेन्द्रिय का विषय है और योग में इन्द्रियों को विषयों से हटाया जाता है। एकान्त की संस्तुति की जाती है;किन्तु यह मन को एकस्थ करने में सहायक भी होता है। योगी को साधना के मध्यवर्ती स्तरों में विभिन्न भांति की ध्वनियां सुनाई पड़ती हैं। 'हठयोग दीपिका' में लिखा है कि जिनको तत्वबोध हो वे नादोपासना करें।'संगीत रत्नाकर'के अनुसार नाद ब्रह्म की उपासना से त्रिदेवों की प्राप्ति होती है।अग्निपुराण के अनुसार शब्द ब्रह्म को जानने वाला ब्रह्म तत्व को लब्ध कर लेता है।ऋग्वेद 8/33/10 में कहा गया है कि"हे शिष्य तुम अपने आत्मिक उत्थान की इच्छा से हमारे पास आये हो।मैं तुम्हें ईश्वर का उपदेश देता हूं। तुम उसे प्राप्त करने के लिये संगीत के साथ उसे पुकरोगे,तो वह तुम्हारी हृदय गुहा में प्रकट होकर स्नेह प्रदान करेगा।"
          गीता अध्याय 9 श्लोक 14 में कहा गया है:---
          सततं कीर्तयन्तो मां यतन्तश्च दृढ़वृताः।
          नमस्यन्तश्च मां भक्या नित्ययुक्ता उपासते।।

(अर्थात् वे दृढ़ निश्चयवाले भक्तजन निरन्तर मेरे नाम और गुणों का कीर्तन करते हुए तथा मेरी प्राप्ति का यत्न करते हुए और मुझको बार बार प्रणाम करते हुए,सदा मेरे ध्यान में युक्त होकर अनन्य प्रेम से मेरी उपासना करते है।


       भगवती के ध्यान के वर्णन में सप्त स्वरात्मक वीणावादन आया है।वीणा के सप्त स्वरों को सिद्ध करने से सारस्वत प्रवाह होता है।उपासक वीणावादन द्वारा भगवती के भजन से प्रभावित होकर उस शब्द माधुर्य से वृत्तियों का पुञ्ज एक निश्चित स्थान पर जम जाता है।"गीतज्ञो यदि गीतेन नाप्नोति परमं पदम्।शिवस्यानुचरो भूत्वा तेनैव सह मोदते।।यानी गीतों से शिव का सालोक्य अवश्य मिलता है।

        
        गीत को ताल के साथ लाने से निर्विकल्प समाधि हो जाती है।ताल से ही लास्य होता है,लास्य से लय यानी तदाकार होना।"तालज्ञश्चा प्रयासेन मोक्षमार्गं निगच्छति"
        
संगीत से पत्थर पिघलाना,मेघों का आह्वान आदि अनेक चमत्कार लोक विख्यात हैं।बैजू बावरा,तानसेन की करिश्माई संगीत कला से कौन परिचित नहीं?स्वामी हरिदास ने अपने संगीत भजन से वृन्दावन के निधिवन में प्रत्यक्ष रासलीला देखी और दिखाई तथा बांके विहारी को प्रकट किया,जिनका श्रीविग्रह वहां स्वामी जी की संगीत शक्ति के मूर्तिमन्त प्रमाण के रूप मे विराजमान और पूजित है।

         संगीत का कोई आलेख श्रीकृष्ण की वंशीध्वनि का उल्लेख किये बिना अपूर्ण रहेगा। वे "कृष्णस्तु भगवान् स्वयम्" यानी पूर्ण परात्पर ब्रह्म ही थे।गोप बालाएं अति उच्च सिद्ध आत्माएं थीं,जिन्हें केवल सगुण रूप भगवान का सानिध्य पाना शेष रह गया था। उनके वंशी ध्वनि करते ही उस आनन्द बीज 'क्लीं' मिश्रित स्वर से ब्रज सुन्दरियां इतने वेग से दौड़तीं कि उनके कुण्डलों के हिलने से वायु के झोंके रहे थे; और इस गति से वे उनसे मिल जातीं। अर्थात् सदेह सायुज्य प्राप्त कर लेती। भागवत की 'रास पञ्चाध्यायी' के श्लोक मुक्ति पथ के सोपान ही हैं।
     
               निशम्य गीतं तदनंगवर्द्धनं
                      ब्रजस्त्रियः कृष्णग्रहीत मानसाः।
               आजग्मुरन्योन्यमलक्षितोद्यमा
                      यत्र कान्तो जव लोल कुण्डलाः

                    
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Pure Organic Herbal Tea

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